गले भी मिलेंगे और हाथ भी मिलाएंगे,
आपके घर आएंगे आप को भी बुलाएंगे।
मौत का ज़हर है फ़िज़ाओं में अभी ठहरो,
अमृत जब बरसेगा घटाओं से तब आएंगे।
हमारे ही हाथ में है अब तीन हफ्ते या तीन माह,
गर नही निकलेंगे घर से तो सकूँ पाएंगे।
कहीं ऐसा न हो के हो ही न अब अपना मिलना,
कँही ऐसा हुआ गर तो दोस्त बहुत पछताएंगे।
अभी भी वक़्त है संभल जाएं दोस्तो वर्ना,
यह दास्ताँ किसी को सुना भी न पाएंगे।
चलो एक वायदा करे खुद से हाथ दिल पे रख के,
कुछ भी कर के कॅरोना को
हम भगाएंगे।
डॉ लक्ष्मीकांत
प्राचार्य, दयानंद कॉलेज अजमेर